रनभूमि को छोर,
तेरा मोक्ष नहीं मिलेगा वहां,
तपभूमि को छोर,
तेरा चरम नहीं साकार वहां,
लड़ सकता है तो लड़,
स्वभूमि के हुंकारों से,
अविजित छोरे हुए
भूकाल के उन सन्नाटों से ,
कर सकता है याद तो कर,
वचन अपनी नन्ही जबानों के,
नहीं तौलती थी जो आँखें,
चाहत को धन के पैमाने से,
कर सकता है तो कर खुश उन्हें,
जिसने थामा तुझे थक जाने पे
कन्धों पर रखकर तुझे घुमाया,
की तू दौड़ सके वक़्त आने पे.
No comments:
Post a Comment