अपनी नाकामियों के शोक से ,
की खुद-ब-खुद बंद हों बेवक्त,
तेरी नज़रें ज़िल्लत के ख़ौफ़ से
"Part of me suspects that I'm a loser, and the other part of me thinks I'm God Almighty”. John Lennon
खंडहर
परछाइयाँ भी धुंधली लगती है कभी ...
कांपती रहती है कम रौशनी के दायरे में
पारदर्शी सतह पे मजबूर दिखती है कभी.
लिपटी रहती है धुंध से सर्द रातों में ,
फिर चूल्हे के धुंए में घुली रहती है कभी.
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रहती है झिलमिल डबडबायी बूढी आँखों से ,
पत्तों की छांव में खोयी रहती है कभी.
घुर्घुराई छुपती है धुल के बवंडर से ,,
अविरल धारा में चमचमाती रहती है कभी.
यादों के पन्नों पर सरसराती मिलती है कहीं ,
उगते सूरज से लड़खड़ाई मिलती है कभी,
परछाइयाँ भी धुंधली लगती है कभी .
परछाइयाँ
रनभूमि को छोर,
तेरा मोक्ष नहीं मिलेगा वहां,
तपभूमि को छोर,
तेरा चरम नहीं साकार वहां,
लड़ सकता है तो लड़,
स्वभूमि के हुंकारों से,
अविजित छोरे हुए
भूकाल के उन सन्नाटों से ,
कर सकता है याद तो कर,
वचन अपनी नन्ही जबानों के,
नहीं तौलती थी जो आँखें,
चाहत को धन के पैमाने से,
कर सकता है तो कर खुश उन्हें,
जिसने थामा तुझे थक जाने पे
कन्धों पर रखकर तुझे घुमाया,
की तू दौड़ सके वक़्त आने पे.
की तू दौड़ सके वक़्त आने पे
सदियों से नहीं बीती,
ख़त्म नहीं हुई शुरुआत से,
बढ़ी कम होती गयी दूरियों में,
दास्ताँ न दर्ज हुई अल्फाज़ में .
अरसों से नहीं कही,
लिखी नहीं किसी जज्बात से ,
चेहरे के तासुरों में दिखी ,
मिली शीरी को फरहाद में .
मिली कल- आज- कल में नहीं ,
गुम हुई हर साँस की दरकार में
कुछ परिंदों को जन्नत बराबर दिखी ,
कभी खोयी किसी की फरियाद में.
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फरियाद