सदियों से नहीं बीती,
ख़त्म नहीं हुई शुरुआत से,
बढ़ी कम होती गयी दूरियों में,
दास्ताँ न दर्ज हुई अल्फाज़ में .
अरसों से नहीं कही,
लिखी नहीं किसी जज्बात से ,
चेहरे के तासुरों में दिखी ,
मिली शीरी को फरहाद में .
मिली कल- आज- कल में नहीं ,
गुम हुई हर साँस की दरकार में
कुछ परिंदों को जन्नत बराबर दिखी ,
कभी खोयी किसी की फरियाद में.
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