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जब उनके चेहरों के सन्नाटे ,
आँखों में तैरते मिलते है ..
बुझी अधजगी आँखों में,
अँधेरी सुबहों के साए जगते हैं.
जब एक चाय की प्याली उठाने में,
सूने हाथ दफ़तन कँपते हैं.
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जब उनके तस्वीरों के साए में ,
हम रात अकेले बैठक करते हैं.
इक शब्द को आवाज़ बनानें में ,
सूखे होंठ थरथराये फिरते हैं,
जब कुछ यादों के पन्ने पल्टानें पर ,
पथराये सपने बरबस बरसते हैं.
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जब नन्हीं जुबां के फर्राटे,
हर वक़्त उन्हें ढूंढ़ते रहते हैं ,
दफनाई सच्चाई को समझाने ,
सयाने घुर्घुराए फेरते रहते हैं ,
जब जेहन की परतों को कुरेदने पर,
अनछुए पल अनायास ही डसते हैं .
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to be continued
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