Friday, March 16, 2012

जब वो नहीं होते हैं

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जब उनके चेहरों के सन्नाटे ,

आँखों में तैरते मिलते है ..

बुझी अधजगी आँखों में,

अँधेरी सुबहों के साए जगते हैं.

जब एक चाय की प्याली उठाने में,

सूने हाथ दफ़तन कँपते हैं.

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जब उनके तस्वीरों के साए में ,

हम रात अकेले बैठक करते हैं.

इक शब्द को आवाज़ बनानें में ,

सूखे होंठ थरथराये फिरते हैं,

जब कुछ यादों के पन्ने पल्टानें पर ,

पथराये सपने बरबस बरसते हैं.

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जब नन्हीं जुबां के फर्राटे,

हर वक़्त उन्हें ढूंढ़ते रहते हैं ,

दफनाई सच्चाई को समझाने ,

सयाने घुर्घुराए फेरते रहते हैं ,

जब जेहन की परतों को कुरेदने पर,

अनछुए पल अनायास ही डसते हैं .

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to be continued


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